मैं सीखता रहा इक उम्र हाव-हू करना यूँही नहीं मुझे आया ये गुफ़्तुगू करना अभी तलब ने झमेलों में डाल रक्खा है अभी तो सीखना है तेरी आरज़ू करना हमें चराग़ों से डर कर ये रात बीत गई हमारा ज़िक्र सर-ए-शाम कू-ब-कू करना भला ये किस ने कहा था हयात-बख़्श है ये इश्क़ कभी मिले तो उसे मिरे रू-ब-रू करना किसे ख़बर किसे मिलता है लम्स-ए-फ़िक्र-ए-रसा ख़याल-ए-यार के ज़िम्मे है जुस्तुजू करना मुझे भी रंज है मुरझा गए वो फूल से लोग बता रहा है मिरा ज़िक्र-ए-रंग-ओ-बो करना सुकूत-ए-शब ने सिखाया था मुझ को आख़िर-ए-शब बला का शोर हो जब ख़ामुशी रफ़ू करना