मैं सो रहा था और कोई बेदार मुझ में था शायद अभी तलक मिरा पिंदार मुझ में था वो कज-अदा सही मिरी पहचान भी था वो अपने नशे में मस्त जो फ़नकार मुझ में था मैं ख़ुद को भूलता भी तो किस तरह भूलता इक शख़्स था कि आइना-बरदार मुझ में था शायद इसी सबब से तवाज़ुन सा मुझ में है इक मोहतसिब लिए हुए तलवार मुझ में था अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे था नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था