मैं सोचता हूँ कहीं तू ख़फ़ा न हो जाए तिरी अना मिरी ज़ंजीर-ए-पा न हो जाए ये जीती-जागती आँखें ये ख़्वाब सी दुनिया वुफ़ूर-ए-शौक़ ख़ुद अपनी जज़ा न हो जाए क़दम क़दम पे बपा जश्न-ए-इम्तिहान-ए-वफ़ा तिरी तरह कोई दर्द-आश्ना न हो जाए न देख मुझ को मोहब्बत की आँख से ऐ दोस्त मिरा वजूद मिरा मुद्दआ न हो जाए मैं जिस को ढूँड रहा हूँ नशात-ए-क़ुर्बत में मिरे ख़याल से भी मावरा भी हो जाए ज़मीं की गोद से सूरज निकालने वालो सितारा-ए-सहरी रहनुमा न हो जाए अब और ता-ब-कुजा ये हिसार-ए-मौसम-ए-दर्द अब उस तरफ़ भी दरूद-ए-सबा न हो जाए हरीम-ए-जाँ में है अर्ज़ां ख़ुमार-ए-तीरा-शबी ये उस दयार की आब-ओ-हवा न हो जाए ग़म-ए-फ़िराक़ में लज़्ज़त सही मगर 'असलम' मिरी हयात मिरा ख़ूँ-बहा न हो जाए