मैं तिरे वास्ते लड़ते हुए मारा जाता इश्क़ वालों में मोहब्बत से पुकारा जाता संग से शीशा बनाते हैं बनाने वाले कोई होता तो मिरे दिल को सुधारा जाता यार लोगों ने बिछड़ने में बहुत जल्दी की साथ चलते तो मुक़द्दर भी सँवारा जाता मैं मोहब्बत के क़बीले का पयम्बर होता तू सहीफ़े की तरह मुझ पे उतारा जाता तेरी आँखों से कोई नज़्म तराशी जाती तेरे होंटों से कोई शेर उभारा जाता चाहता मैं तो उसे छोड़ के जा सकता था गाँव मिट जाता जो दरिया का किनारा जाता अब कोई और वसीला मिरे जीने के लिए अब तिरा हिज्र नहीं मुझ से गुज़ारा जाता