मैं ठीक-ठाक हूँ वो भी न कुछ मलाल करे बस उस से कहना कि पौधों कि देख-भाल करे हसीन शाम में हम दाएँ बाएँ बैठे हों तुम्हारे साए से साया मिरा विसाल करे वो धूप है कि गए हार जिस से सब साए अब ऐसे में तो तिरी ज़ुल्फ़ कुछ कमाल करे कभी तो ख़्वाब में आए मिरे रक़ीबों के और उन के ख़्वाब में भी मेरा ही ख़याल करे वो अपनी लौ को ज़रा और तेज़ कर ले बस अगर ये रात चराग़ों से कुछ सवाल करे