मैं तो ऐसा कोई मंज़र कभी देखा न था दिन ढला जाता था और साया कोई लम्बा न था फिर तो उस के सामने जैसे कोई रस्ता न था जीतने वाला कभी यूँ हौसला हारा न था लोग तो कहते थे लेकिन मैं भी तो अंधा न था मैं ने ख़ुद देखा है मेरे धड़ पे भी चेहरा न था रोकना चाहा था मैं ने वो भी रुक जाता मगर एक झोंका था हवा का वो ठहर सकता न था कितने ही कच्चे घड़े लहरों को याद आने लगे साहिलों के होंटों पर ऐसा कोई नौहा न था गोद में माओं की बच्चे रात-भर रोते रहे पास पोतों वालियों के क्या कोई क़िस्सा न था