मैं तो बैठा था हर इक शय से किनारा कर के वक़्त ने छोड़ दिया दोस्त तुम्हारा कर के बात दरिया भी कभी रुक के क्या करता था अब तो हर मौज गुज़रती है इशारा कर के वो अजब दुश्मन-ए-जाँ था जो मुझे छोड़ गया मेरे अंदर ही कहीं मुझ को सफ़-आरा कर के इक दिया और जलाया है सहर होने तक शब-ए-हिज्राँ तिरे नाम एक सितारा कर के जब से जागी है तिरे लम्स की ख़्वाहिश दिल में रहना पड़ता है मुझे ख़ुद से किनारा कर के दश्त छानेगा तिरी ख़ाक मोहब्बत से 'सईद' इश्क़ देखेगा तुझे सारे का सारा कर के