मैं उस को भूल गया था वो याद सा आया ज़मीं हिली तो मैं समझा कि ज़लज़ला आया फिर इस के ब'अद कई रास्ते कई घर थे वो मोड़ तक मुझे रुक रुक के देखता आया मैं उस को ढूँडने निकला तो मेरे जाने के ब'अद गली गली मुझे घर तक वो पूछता आया जुदा हुए तो ज़मान ओ मकाँ के बोद के साथ जो राह में था दिलों में वो फ़ासला आया मैं आईना तो नहीं हूँ प एक सोच में हूँ तू ख़ुद-नुमाई के जौहर कहाँ छुपा आया 'सलीम' तर्क-ए-रह-ओ-रस्म तर्क-ए-इश्क़ नहीं जिधर से गुज़रे उधर उस का रास्ता आया