मैं वहम बेचता हूँ वसवसे बनाता हूँ सितारे देखता हूँ ज़ाइचे बनाता हूँ गराँ है इतना तो क्यों वक़्त हो मुझे दरकार मज़े से बैठा हुआ बुलबुले बनाता हूँ मुसाफ़िरों का मिरे घर हुजूम रहता है मैं प्यास बाँटता हूँ आबले बनाता हूँ ख़रीद लाता हूँ पहले तिरे विसाल के ख़्वाब फिर उन से अपने लिए रत-जगे बनाता हूँ यही नहीं कि ज़मीनें मिरी अछूती हैं मैं आसमान भी अपने लिए बनाता हूँ