मैं वो आँसू कि जो माला में पिरोया जाए तू वो मोती कि जिसे देख के रोया जाए बहर को बहर न समझे तो ख़तावार बने अब तक़ाज़ा है सफ़ीने को डुबोया जाए ये बजा है कि अमानत में ख़यानत न करो एहतियातन ही सही ज़ख़्म को धोया जाए थक गए नज़रों के पाँव भी सियह जंगल में अब ज़रा देर ठहर जाओ कि सोया जाए आज की रात ब-हर-हाल न सोना 'शाहिद' हर घड़ी आँख में इक ख़ार चुभोया जाए