मैं यहाँ शोर किस लिए करता धर लिया जाऊँगा ये इम्काँ था देखिए रुख़ हवा का कब ठहरे आ गया ले के वो दिया जलता पेड़ पौदे तो ख़ौफ़ खाते हैं घास पर उस का बस नहीं चलता उड़ गया आख़िरश मैं कमरे से कब तिलक जीते-जी यहाँ मरता मेरे अंदर जो ढूँढता था मुझे उस से कट कर मैं मिल चुका कब का ख़्वाब दे कर ये फूल लाया हूँ कहिए महँगा मिला है या सस्ता ईद का दिन तो है मगर 'जाफ़र' मैं अकेले तो हँस नहीं सकता