मैं ने कहा कि शहर में एक चराग़ भी नहीं उस ने कहा कि ज़ख़्म भी क्या नहीं दाग़ भी नहीं मैं ने कहा कि आख़िरश मुझ को ख़ुदा न मिल सका उस ने कहा कि मेरे पास अपना सुराग़ भी नहीं मैं ने कहा कि आशिक़ी उस ने कहा कि हाए हाए अब वो उमंग भी कहाँ अब वो फ़राग़ भी नहीं मैं ने कहा कि गुल-फ़रोश सारे गुलाब ले गए उस ने कहा कि कल तलक देखिए बाग़ भी नहीं मैं ने कहा कि 'शहरयार' आप से कुछ मलूल हैं उस ने कहा कि ठीक है मुझ को दिमाग़ भी नहीं