मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं कि जो मौत को ज़िंदगी जानते हैं शब-ए-वस्ल लीं उन की इतनी बलाएँ कि हमदम मिरे हाथ ही जानते हैं न हो दिल तो क्या लुत्फ़-ए-आज़ार-ओ-राहत बराबर ख़ुशी ना-ख़ुशी जानते हैं जो है मेरे दिल में उन्हीं को ख़बर है जो मैं जानता हूँ वही जानते हैं पड़ा हूँ सर-ए-बज़्म मैं दम चुराए मगर वो इसे बे-ख़ुदी जानते हैं कहाँ क़द्र-ए-हम-जिंस हम-जिंस को है फ़रिश्तों को भी आदमी जानते हैं कहूँ हाल-ए-दिल तो कहें उस से हासिल सभी को ख़बर है सभी जानते हैं वो नादान अंजान भोले हैं ऐसे कि सब शेवा-ए-दुश्मनी जानते हैं नहीं जानते इस का अंजाम क्या है वो मरना मेरा दिल-लगी जानते हैं समझता है तू 'दाग़' को रिंद ज़ाहिद मगर रिंद उस को वली जानते हैं