मज्लिस-ए-ग़म, न कोई बज़्म-ए-तरब, क्या करते घर ही जा सकते थे आवारा-ए-शब, क्या करते ये तो अच्छा किया तन्हाई की आदत रक्खी तब उसे छोड़ दिया होता तो अब क्या करते रौशनी, रंग, महक, ताइर-ए-ख़ुश-लहन, सबा तू न आता जो चमन में तो ये सब क्या करते दिल का ग़म दिल में लिए लौट गए हम चुप-चाप कोई सुनता ही न था शोर-ओ-शग़ब क्या करते बात करने में हमें कौन सी दुश्वारी थी उस की आँखों से तख़ातुब था सो लब क्या करते कुछ किया होता तो फिर ज़ो'म भी अच्छा लगता हम ज़ियाँ-कार थे, एलान-ए-नसब क्या करते देख कर तुझ को सिरहाने तिरे बीमार-ए-जुनूँ जाँ-ब-लब थे, सो हुए आह-ब-लब, क्या करते तू ने दीवानों से मुँह मोड़ लिया, ठीक किया इन का कुछ ठीक नहीं था कि ये कब क्या करते जो सुख़न-साज़ चुराते हैं मिरा तर्ज़-ए-सुख़न उन का अपना न कोई तौर, न ढब, क्या करते यही होना था जो 'इरफ़ान' तिरे साथ हुआ मुंकिर-ए-'मीर' भला तेरा अदब किया करते