मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ से होता है सफ़र शुरू यक़ीं का गुमाँ से होता है वहीं कहीं नज़र आता है आप का चेहरा तुलू चाँद फ़लक पर जहाँ से होता है हम अपने बाग़ के फूलों को नोच डालते हैं जब इख़्तिलाफ़ कोई बाग़बाँ से होता है मुझे ख़बर ही नहीं थी कि इश्क़ का आग़ाज़ अब इब्तिदा से नहीं दरमियाँ से होता है उरूज पर है चमन में बहार का मौसम सफ़र शुरू ख़िज़ाँ का यहाँ से होता है ज़वाल-ए-मौसम-ए-ख़ुश-रंग का गिला 'आसिम' ज़मीन से तो नहीं आसमाँ से होता है