मकाँ से ला-मकाँ होते हुए भी कहाँ हम हैं कहाँ होते हुए भी बहुत कुछ अब भी बाक़ी है ज़मीं पर बहुत कुछ राएगाँ होते हुए भी सिरे से हम ही ग़ाएब हो गए हैं सभी के दरमियाँ होते हुए भी भँवर की सम्त बढ़ती जा रही है ये कश्ती बादबाँ होते हुए बहुत ही मुख़्तसर होते गए हैं मुकम्मल दास्ताँ होते हुए भी बहुत घाटे में है उर्दू ज़बाँ क्यों मोहब्बत की ज़बाँ होते हुए भी