मकाँ में क़ैद-ए-सदा की दहशत मकाँ से बाहर ख़ला की दहशत हवा है ख़ौफ़-ए-ख़ुदा से ख़ाली है इस नगर में बला की दहशत घिरा हुआ हूँ मैं हर तरफ़ से है आइने में हवा की दहशत ज़मीं पे हर सम्त हद्द-ए-आखिर फ़लक पे ला-इंतिहा की दहशत शजर के साए में मौत देखो समर में उस के फ़ना की दहशत