मकान सोए हुए थे अभी कि दर जागे थकन मिटी भी न थी और नए सफ़र जागे जो दिन चढ़ा तो हमें नींद की ज़रूरत थी सहर की आस में हम लोग रात भर जागे जकड़ रखा था फ़ज़ा को हमारे नारों ने जो लब ख़मोश हुए तो दिलों में डर जागे हमें डराएगी क्या रात ख़ुद है सहमी हुई बदन तो जागते रहते थे अब के सर जागे उठाओ हाथ कि वक़्त-ए-क़ुबूलियत है यही दुआ करो कि दुआओं में अब असर जागे