मलाल जी पे न यूँ एक चारागर ने लिया असर जो मेरी उदासी का बाम-ओ-दर ने लिया बटा रहा यूँही ग़म-हा-ए-रोज़गार का बोझ कुछ अपने दिल ने सँभाला कुछ अपने सर ने लिया लुटे तो लुट के ये तौक़ीर भी हमीं को मिली गए जिधर भी हमें सर पे रह-गुज़र ने लिया जो शीशा टूटा चुना दिल ने रेज़ा रेज़ा उसे जो रंग बिखरा वो पलकों पे चश्म-ए-तर ने लिया हम ऐसे ख़ाना-ख़राबों से और क्या मिलता बस एक लुत्फ़-ए-तमाशा नज़र नज़र ने लिया ये सोचता हूँ तो डसती है और शाख़-ए-चमन सुकूँ का नाम ही क्यूँ इक शिकस्ता-पर ने लिया जो घर में परतव-ए-ज़ौ था उसे बुझा गई रात जो दिल में विरसा-ए-ख़ूँ था वो सब सहर ने लिया ख़याल-ए-बे-ख़बराँ तो बहुत रहा उन को पता कुछ अपना भी यारान-ए-बा-ख़बर ने लिया दिल अश्क अश्क दिमाग़ आग आग है 'महशर' ये इंतिक़ाम भी मुझ से मिरे हुनर ने लिया