मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान जान कर अंजान मत हो मुज कूँ तू बे-जान जान फ़िक्र अपनी नहीं मुझे है उस की बद-नामी का ख़ौफ़ मुझ कूँ नाम-ओ-नंग की है हर घड़ी हर आन आन तीर ओ ख़ंजर में नहीं है आब-दारी इस क़दर तुझ निगह की देख कर जल्दी हुआ क़ुर्बान बान दश्त-ए-वहशत में निपट बे-कस हूँ ऐ आहू-निगाह हूँ भिकारी वस्ल का दे मुज कूँ इस मैदान दान क़त्ल करने पर तिरे है तेग़-बर-कफ़ वो सनम सर-कशी मत कर 'सिराज' अब जान का फ़रमान मान