माना हर शख़्स मिरे हक़ में गवाही देगा ज़ुल्म-परवर जो वो ठहरा तो सज़ा ही देगा क्या गुमाँ था मिरे अज्दाद के रौशन नामो ये मिरा दौर तुम्हें बख़्त-ए-सियह ही देगा तू है इक रेत मुक़द्दर है हवा की ठोकर फिर भला कौन तुझे पुश्त-पनाही देगा मेरे जंगल की भी वुसअ'त को तो देखा होता इक दिया क्या मुझे अंजाम बता ही देगा मैं तो रूठा कि मनाते हुए देखूँ उस को क्या ख़बर थी कि सितमगर वो भुला ही देगा वक़्त बदला तो उसी हाथ में होगा ख़ंजर ये न सोच जब भी उठेगा तो दुआ ही देगा ना-ख़ुदाओं पे भरोसा न डुबो दे 'आमिर' क़ुर्ब-ए-साहिल जो तुझे देगा ख़ुदा ही देगा