माने तो किस की दीवाना माने जितनी ज़बानें उतने फ़साने अंदाज़ उस का अहवाल मेरा कुछ मैं न समझूँ कुछ वो न जाने अल्लाह रे ये ख़ुद-ए'तिमादी मैं अब चला हूँ उन को बुलाने गुम-करदा-ए-रह क्या सोचता है छोड़ आया पीछे कितने ठिकाने मेरी वफ़ा का वो मो'तरिफ़ है अपनी ख़ता को माने न माने चाहो तो आओ चाहो न आओ दोनों के यकसाँ हीले बहाने कुछ मेरे ग़म से निस्बत है उन को याद आ रहे हैं कितने फ़साने क्या है 'सलीम' इन बातों का हासिल किस को चला है तू आज़माने