मआनी लफ़्ज़ों के पीरी में कुछ शबाब में कुछ और उस के बारे में लिक्खा नहीं किताब में कुछ पहुँच के देखा तो माँगे की रौशनी के सिवा फ़लक के तारों में कुछ है न माहताब में कुछ हर एक घूँट में यकसाँ नहीं थी तल्ख़ी-ए-मय कि घोल देते हैं हालात भी शराब में कुछ कई गुनाहों का इंदिराज ही नहीं मिलता किसी से भूल हुई है मिरे हिसाब में कुछ है तेरा अक्स कि मेरे ग़मों का साया है नज़र तो आता है पैमाना-ए-शराब में कुछ