शम्अ' उल्फ़त की बुझा दूँ ये कहाँ मुमकिन है तेरी यादों को मिटा दूँ ये कहाँ मुमकिन है मेरी उल्फ़त का है दिल में तिरे आना-जाना कोई दीवार लगा दूँ ये कहाँ मुमकिन है मौत के बाद भी तुझ को है भुलाना मुश्किल जीते जी तुझ को भुला दूँ ये कहाँ मुमकिन है सिर्फ़ ख़ुशियों को पता तेरा बता देती हूँ ग़म को तेरा मैं पता दूँ ये कहाँ मुमकिन है तोड़ कर दिल को 'शिखर' उस ने ख़ता की लेकिन अपने दिलबर को सज़ा दूँ ये कहाँ मुमकिन है