मंज़िल-ए-जाँ ख़ुद बिछाती जा रही है रास्ता जीप जंगल में बनाती जा रही है रास्ता एक ना-मुम्किन पहाड़ी रफ़्ता रफ़्ता हाथ से मेरे पाँव में गिराती जा रही है रास्ता सोचता हूँ मेरी हस्ती की ये पथरीली सड़क जंगलों से क्यों मिलाती जा रही है रास्ता साथ उस के साल भर से चल रहा हूँ रोड पर अपने घर का क्यों बढ़ाती जा रही है रास्ता पीछे पीछे पाँव उठते जा रहे हैं इश्क़ में आगे आगे वो बताती जा रही है रास्ता रह बनाता जा रहा हूँ दश्त में 'मंसूर' मैं वक़्त की आँधी उड़ाती जा रही है रास्ता