आए हैं देने तसल्ली वो सँभल जाने के बा'द ज़िंदगी की धूप का मौसम बदल जाने के बा'द है मिरा भी इक मसीहा दोस्तो तुम देखना आएगा लेकिन वो मेरा दम निकल जाने के बा'द उम्र भर अब क़ब्र पर मेरी दुआ-ख़्वानी करें चेहरा-ए-इख़्लास पर वो ख़ाक मल जाने के बा'द उन के आते बज़्म में क्यूँ होश सब के उड़ गए दूर होता है अंधेरा शम्अ' जल जाने के बा'द तेग़ के दम पर गुमाँ था जिन को अपनी फ़त्ह का महव-ए-हैरत हैं क़लम का ज़ोर चल जाने के बा'द जो नदी इतरा रही है अपने धारे पर अभी लेगी अपना जाएज़ा सागर में ढल जाने के बा'द इस जहाँ में बे-ग़रज़ 'मक़्सूद' कोई भी नहीं सब भुला देंगे तुझे मतलब निकल जाने के बा'द