मर गया ग़म में तिरे हाए में रोता रोता जेब-ओ-दामन के तईं अश्क से धोता धोता ग़ैर-अज़-ख़ार-ए-सितम कुछ न उगा और कहीं किश्त-ए-उल्फ़त में फिरा अश्क में बोता बोता रफ़्ता रफ़्ता हुआ आख़िर के तईं को मुफ़्लिस नक़्द को उम्र की मैं हिज्र में खोता खोता गरचे फ़रहाद था और क़ैस जुनूँ में मशहूर एक दिन मैं भी पहुँच जाऊँगा होता होता चौंक 'आसिफ़' ने बनाया अजब अपना अहवाल उठ गया पास सीं तो सुब्ह जो सोता सोता