मरहले तो ज़ीस्त के तय कर लिए पाँव लेकिन आबलों से भर लिए घर से बाहर रौशनी थी मुंतज़िर कैसे कैसे ख़ुशनुमा मंज़र लिए और क्या देखें कि वहशत के सबब फूल देखे हाथ में पत्थर लिए दश्त से घर लौट के पछताए हम घर भी निकला दश्त का मंज़र लिए सीख दुनिया से तकल्लुम का हुनर एक फ़िक़रा सैकड़ों नश्तर लिए अब ज़रा तुम भी ख़ुदा बन कर दिखाओ पत्थरो हम ने तो सज्दे कर लिए नक़्श है 'ख़ावर' उसी का शाहकार उल्टे-सीधे रंग जिस ने भर लिए