मरज़ लगता है जो मुझ को उसे मेरी दवा समझे दिवाना हो गया हूँ मैं दिवानों को वो क्या समझे मैं अपने आप में ख़ुश हूँ मुझे इस से ग़रज़ क्या है कि ये मुझ को भला समझे कि वो मुझ को बुरा समझे बिछड़ने का वो हम से नाम तक लेने से घबराए जिसे हम हिज्र कहते हैं उसे वो बद-दुआ' समझे गुनाहों से बचा जाए कहाँ तक इस ज़माने में कि हर इक मोड़ पर मिलते हैं वो जिन से ख़ुदा समझे भरोसा क्या मोहब्बत कब तुम्हें बदनाम कर जाए कि आशिक़ को हमेशा ही ज़माना सर-फिरा समझे हमें वो किस सज़ा के वास्ते तय्यार करता है जो अपने भी गुनाहों को हमारी ही ख़ता समझे वो हम से नींद के रस्ते सही पर रू-ब-रू तो हो कभी तो आँखों में भर ले हमें भी ख़्वाब सा समझे हमें 'अफ़रंग' ज़ालिम से शिकायत है तो इतनी है हम उस को तो समझते हैं वो हम को भी ज़रा समझे