मरज़-ए-इश्क़ दिल को ज़ोर लगा By Ghazal << रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविद... इतनी हसीन इतनी जवाँ रात क... >> मरज़-ए-इश्क़ दिल को ज़ोर लगा जाँ-ब-लब हूँ ख़याल-ए-गोर लगा बे-तरह कुछ घुला ही जाता है शम्अ की तरह दिल को चोर लगा तेरे मुखड़े को यूँ तके है दिल चाँद के जूँ रहे चकोर लगा दर-ओ-दीवार पर हर एक तरफ़ आँसुओं से 'असर' के शोर लगा Share on: