मरते मरते ये हम ने काम किया जान दे कर वफ़ा का नाम किया शैख़ सनआ' बना है इश्क़ में दिल बुत को सज्दा किया सलाम किया ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच खोल कर रुख़ पर एक जा लुत्फ़-ए-सुब्ह-ओ-शाम किया तुम ने मजनूँ कहा तो आशिक़ ने दश्त-ए-पुर-ख़ार में क़याम किया महव-ए-हैरत बना दिया मुझ को तुम ने किस लुत्फ़ से कलाम किया चल के गुलशन में देख ले कैसा मौसम-ए-गुल ने एहतिमाम किया मुब्तला ख़ुद निसार हो जाते तुम ने अफ़्सोस क़त्ल-ए-आम किया अपने बंदों के वास्ते उस ने वाह क्या कुछ न इंतिज़ाम किया सारी ख़िल्क़त हुई तमाशाई तुम ने जब बाम पर क़याम किया कू-ए-जानाँ है मुझ को ख़ुल्द-ए-बरीं मैं ने अपना यहीं मक़ाम किया खींच लाया 'जमीला' आख़िर-ए-कार जज़्ब-ए-सादिक़ ने ख़ूब काम किया