मसर्रतों की साअतों में इख़्तिसार कर लिया हयात-ए-ग़म को हम ने और साज़गार कर लिया क़सम जब उस ने खाई हम ने ए'तिबार कर लिया ज़रा सी देर ज़िंदगी को ख़ुश-गवार कर लिया वो आज चाहते थे बात कुछ बढ़े मगर वो हम कि बात बात पर सुकूत इख़्तियार कर लिया कहो कि मेहर-ए-सुब्ह-ताब आए हो के बे-नक़ाब कोई बस आ चुका किसी का इंतिज़ार कर लिया क़दम क़दम पे हादसे क़दम क़दम पे इंक़िलाब हमें तो देखो ज़िंदगी का ए'तिबार कर लिया