मशक़्क़त का ख़ज़ाना माँगता है मिरी मेहनत ज़माना माँगता है हर इक लम्हा दिल-ए-आवारा-फ़ितरत मसाफ़त का ख़ज़ाना माँगता है मुक़द्दर से जिसे माँगा था मैं ने उसे मुझ से ज़माना माँगता है अजब पागल है मेरे मन का पंछी क़फ़स में आशियाना माँगता है हमें हर आन आमादा-ए-हिज्रत हमारा आब-ओ-दाना माँगता है सितम ये है कि हम तिश्ना-लबों से सितमगर आबयाना माँगता है हमारे शहर का मर्द-ए-सुबुक-सर कुलाह-ए-ख़ुसरवाना माँगता है मिरा हर इक मुनाफ़िक़ यार मुझ से ख़ुलूस-ए-दोस्ताना माँगता हे