मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए भौं पास आँख क़िबला-ए-हाजात चाहिए आशिक़ हुए हैं आप भी एक और शख़्स पर आख़िर सितम की कुछ तो मुकाफ़ात चाहिए दे दाद ऐ फ़लक दिल-ए-हसरत-परस्त की हाँ कुछ न कुछ तलाफ़ी-ए-माफ़ात चाहिए सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी तक़रीब कुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात चाहिए मय से ग़रज़ नशात है किस रू-सियाह को इक-गूना बे-ख़ुदी मुझे दिन रात चाहिए नश्व-ओ-नुमा है अस्ल से 'ग़ालिब' फ़ुरूअ' को ख़ामोशी ही से निकले है जो बात चाहिए है रंग-ए-लाला-ओ-गुल-ओ-नसरीं जुदा जुदा हर रंग में बहार का इसबात चाहिए सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी रू सू-ए-क़िबला वक़्त-ए-मुनाजात चाहिए या'नी ब-हस्ब-ए-गर्दिश-ए-पैमान-ए-सिफ़ात आरिफ़ हमेशा मस्त-ए-मय-ए-ज़ात चाहिए