मस्जूद मेरा राह-नुमा क्यूँ नहीं हुआ तेरा ख़ुदा भी मेरा ख़ुदा क्यूँ नहीं हुआ मुझ को ज़मीर टोकता रहता है हर घड़ी लोगों का दिल भी शीशा-नुमा क्यूँ नहीं हुआ मैं बे-दिमाग़ दोस्त बनाता रहा सदा मुझ पर असर ख़ुशूनतों का क्यूँ नहीं हुआ ज़ाहिर-परस्त लोग मिरे आस-पास हैं मैं भी उन्हीं के जैसा भला क्यूँ नहीं हुआ मरते हैं सब तलाश-ए-हयात-ए-दवाम में तेरा सहीफ़ा आब-ए-बक़ा क्यूँ नहीं हुआ बस्ती के सारे लोग जिसे पूजते रहे मेरे लिए वो फ़र्द ख़ुदा क्यूँ नहीं हुआ फिरता रहा गली गली तेरी तलाश में मालूम तेरे घर का पता क्यूँ नहीं हुआ