मस्लहत के ज़ावियों से किस क़दर अंजान है आईनों के बीच में पत्थर बहुत हैरान है कोई क्यूँ बनता सर-ए-महफ़िल तमाशा साहिबो सर उठा कर बोलना तो बस मेरी पहचान है हामियों की भीड़ पर इस राज़ को इफ़्शा करो क़ाफ़िले के मुंतशिर होने का भी इम्कान है मेरा रोना गिड़गिड़ाना राएगाँ सब राएगाँ आप का इक मुस्कुराना दाइमी फ़रमान है रेख़्ता का इक नया मज्ज़ूब है 'शहपर' रसूल शोहरत उस के नाम पर इक नंग है बोहतान है