मस्लक-ए-इश्क़ बयाँ क्या कीजे By Ghazal << ज़िंदा रहने की ये तरकीब न... जब सामने की बात ही उलझी ह... >> मस्लक-ए-इश्क़ बयाँ क्या कीजे कुफ़्र ईमान हुआ जाता है मुझ से ले ले कोई यादें मेरी जी परेशान हुआ जाता है बाग़बानों को ख़बर है कि नहीं बाग़ वीरान हुआ जाता है वहशत-ए-दिल के तसद्दुक़ 'मुमताज़' घर बयाबान हुआ जाता है Share on: