मताअ'-ए-जुरअत-ए-दिल वक़्फ़-ए-यक-निगाह-ए-करम वजूद बे-सर-ओ-सामाँ रहीन-ए-मुल्क-ए-अदम ख़याल-ए-आरिज़-ए-ताबान-ओ-क़ल्ब ख़ूँ-गश्ता शुआ'-ए-महर-ए-दरख़्शाँ की ज़द पे है शबनम वो मेरे जज़्ब का आलम वो एक ना'रा-ए-हू कि जिस से काँप गए बाम-हा-ए-दैर-ओ-हरम मिरी हिकायत-ए-हस्ती मिरा ये क़िस्सा-ए-शौक़ है माजरा-ए-जुनूँ दास्तान-ए-हदस-ओ-क़दम है बरमला दिल-ए-आशिक़ पे राज़-ए-कुन-फ़-यकून यही है उन के गदाओं को मिस्ल-ए-साग़र-ए-जम सुना है अहल-ए-जुनूँ वक़्त से भी तेज़ गए हैं सब्त सीना-ए-अय्याम पर नुक़ूश-ए-क़दम चमक रहा है निगाहों में आज तक ख़ंजर न पूछिए किसी बिस्मिल के शौक़ का आलम अख़ीर रस्म भी शहर-ए-वफ़ा की ख़त्म हुई दहान-ए-ज़ख़्म पे कोई न रख सका मरहम किसी को याद नहीं 'बर्क़' अनीस का मिसरा ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब चाहिए हर-दम