मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है शिकार ख़ुद को बचा देख जाल सामने है ख़याल-ए-कोहना मुक़य्यद है तेरी सोचों में रिहाई दे कि सज़ा यर्ग़माल सामने है मुझे मलाल है अपनी फ़लक-नशीनी पर यही उरूज की हद फिर ज़वाल सामने है रगों में ख़ून के बदले मचल रही है आग ज़ियाँ बदन का न जाँ का वबाल सामने है यही है काबा-ए-मक़्सूद इसी से जल्वा-ए-अर्श उठा ले चाह से क़ूत-ए-हलाल सामने है वो बा-कमाल सियाक़ ओ सबाक़ पर हावी गुज़िश्ता उस की नज़र में मआल सामने है सज़ा की हिम्मत-ए-आली भी हो गई पसपा हज़ार-हा अरक़-ए-इंफ़िआल सामने है ख़ुलूस सिक्का-ए-उफ़्तादा जेब-ए-हस्ती का उठा के डाल दे दस्त-ए-सवाल सामने है हमारे सब्र की हद हम पे आश्कारा हो मुसब्बिबा सबब-ए-इश्तिआल सामने है मुझे अज़ीज़ है सहरा-ए-मुम्किनात की सैर ये और बात कि बाग़-ए-मुहाल सामने है नज़र ब-ख़ैर हो 'राही' कि बू-ए-गुल की तरह छुपा है वो मगर उस का जमाल सामने है