मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है ज़िंदगी चाकलेट केक है थोड़ा थोड़ा सब का हिस्सा है अब जो बार में तन्हा पीता हूँ कॉफ़ी के नाम पे ज़हर उस की तल्ख़ सी शीरीनी में उस के लब का हिस्सा है लोक कहानियों में मा-बा'द-ए-जदीद की पेश-आमद जैसे फ़िक्शन की री-सेल वैल्यू में मज़हब का हिस्सा है के-पी-के अफ़्ग़ानिस्तान है और बलोचिस्तान ईरान सिंध है चीन में और प्यारा पंजाब अरब का हिस्सा है सोहनी या सोहने से पहले हक़ है घड़े पर पानी का कब से घड़ी में जब और तब से ज़्यादा अब का हिस्सा है माना हिज्र की रात है ये पर कितनी ख़ुशी की बात है ये ग़म की रिम-रिम-झिम की हमदम बज़्म-ए-तरब का हिस्सा है कैब चलाने वाले दाजी टैब चलाने वाला साजी वो जो अदब का हिस्सा थे तो ये भी अदब का हिस्सा है तय हुआ नज़्म ही मुस्तक़बिल है पान-सौ बिल है भई प्यारो आँख न मारो ग़ज़ल हमारे हसब-नसब का हिस्सा है इक दिन जब बूढे पेंटर के पास शराब के पैसे नहीं थे छत पर ये घनघोर घटा तब से इस पब का हिस्सा है सैक्स जो पहले साख़्तियाती रोज़-ओ-शब का हिस्सा थी अब माबा'द-ए-साख़्तियाती रोज़-ओ-शब का हिस्सा है क़ाफ़िया बहर रदीफ़ वग़ैरा जैसे हरीफ़ ज़रीफ़ वग़ैरा इन को ठंडा सोडा पिलाओ भाई ये कब का क़िस्सा है