मौजा-ए-रेग-ए-रवान-ए-ग़म में बह के देखना मुफ़लिसी में दोस्तों के साथ रह के देखना दामन-ए-इज़हार में जज़्बे समा सकते हैं नहीं बात फिर भी बात है इक बार कह के देखना ख़ुद को मिट्टी का घरौंदा फ़र्ज़ ही करना नहीं आँधियों की ज़द में रहना और ढह के देखना दिल के सन्नाटे में ख़ुश्बू के दरीचे खुल गए दस्तकों के फूल दरवाज़े पे महके देखना कासा-ए-फ़ितरत में फिर ख़्वाहिश के सिक्के बज उठे फिर परिंदे साँस की डाली पे चहके देखना बे-असर ही क्यूँ न हो पर अपनी ज़ाती सोच हो दोस्तो तख़्लीक़-ए-फ़न का कर्ब सह के देखना बादशाहत के मज़े हैं ख़ाकसारी में 'सलीम' ये नज़ारा यार के कूचे में रह के देखना