मौजों ने हाथ दे के उभारा कभी कभी पाया है डूब कर भी किनारा कभी कभी करती है तेग़-ए-यार इशारा कभी कभी होता है इम्तिहान हमारा कभी कभी चमका है इश्क़ का भी सितारा कभी कभी माँगा है हुस्न ने भी सहारा कभी कभी तालिब की शक्ल में मिली मतलूब की झलक देखा है हम ने ये भी नज़ारा कभी कभी शोख़ी है हुस्न की ये है जज़्ब-ए-वफ़ा का सेहर उस ने हमें सलाम गुज़ारा कभी कभी फ़रियाद-ए-ग़म रवा नहीं दस्तूर-ए-इश्क़ में फिर भी लिया है उस का सहारा कभी कभी मुश्किल में दे सका न सहारा कोई 'रतन' हाँ दर्द ने दिया है सहारा कभी कभी