मौजूद थे वो मेरे ही अंदर खुले हुए मुझ पर दुआ के बा'द खुले दर खुले हुए आँखों ने कर दिया उसे रुख़्सत मगर अभी रक्खे हुए हैं दिल ने सभी दर खुले हुए कुछ तो खुले कि गुज़री है क्या अहल-ए-दश्त पर आए हैं लोग शहर में क्यों सर खुले हुए इक ख़ौफ़ है कि जिस ने उड़ाई है मेरी नींद देखे हैं मैं ने ख़्वाब में ख़ंजर खुले हुए मुमकिन है फिर सरों को उठाएँ न फ़ख़्र से क़ब्रों के देख लें जो कभी सर खुले हुए लुटने में दर्द क्या है कभी उन से पूछ लें छोड़ आए थे जो लोग 'यशब' घर खुले हुए