मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो ये क्या चली चमन में हवा देखते चलो अम्बार हर तरफ़ हैं अँधेरों के ये दुरुस्त शायद नहीं हो आब-ए-बक़ा देखते चलो तसकीन-ए-सुम्बुल-ओ-गुल-ओ-लाला के वास्ते क्या दे रही है बाद-ए-सबा देखते चलो जितने थे जाँ-निसार-ए-चमन ब'अद-ए-सुब्ह-ए-नौ कुछ अज्र भी किसी को मिला देखते चलो असनाम-ए-ज़र के पाँव में डाले हुए जबीं कितने हैं बंदगान-ए-ख़ुदा देखते चलो किस किस का ए'तिमाद-ए-वफ़ा हो गया शिकस्त किस किस को हुस्न से है गिला देखते चलो 'दानिश' को ज़िद है दैर ओ हरम भी सही मगर किस को मिला है इन का पता देखते चलो