मौसम सूखे पेड़ गिराने वाला था किसी किसी में फूल भी आने वाला था पार के मंज़र ने मौक़े पर आँखें दीं मैं अंधा दीवार उठाने वाला था उस ने भी आँखों में आँसू रोक लिए मैं भी अपने ज़ख़्म छुपाने वाला था तुम ने क्यूँ बारूद बिछा दी धरती पर मैं तो दुआ का शहर बसाने वाला था वो लड़की तो कब की मर गई याद आया मैं किस को आवाज़ लगाने वाला था घर के चराग़ ने आग लगा दी बस्ती में मैं सूरज दहलीज़ पे लाने वाला था मेरी दुनिया कैसे उस को रास आती है उस का हर अंदाज़ ज़माने वाला था बच्चे 'अश्क' को पागल कह कर भाग गए वो परियों की कथा सुनाने वाला था