मौसम-ए-गुल आ गया फिर दश्त-पैमाई रहे ऐ जुनूँ लाज़िम है शग़्ल-ए-आबला-पाई रहे लाख मिज़राब-ए-अलम की कार-फ़रमाई रहे ऐ रबाब-ए-इश्क़ फिर भी नग़्मा-पैराई रहे देखना है सोज़-ओ-साज़-ए-मौसम-ए-गुल की बहार इमतिज़ाज-ए-शो'ला-ए-ओ-शबनम की रा'नाई रहे आ सका लब तक किसी के भी न हर्फ़-ए-मुद्दआ' हम तमन्नाई रहे वो भी तमन्नाई रहे हम भी दिखलाएँ जहाँ को दिल के दाग़ों की बहार आप की हासिल अगर हम को मसीहाई रहे जुस्तुजू-ए-यार में पाया न कोई दम क़रार निकहत-ए-गुल की तरह आलम में हरजाई रहे रौनक़-ए-दैर-ओ-हरम का 'क़ादरी' क्या पूछना रौशनी इक शम्अ' की दो घर में जब छाई रहे