मौसम-ए-याद यूँ उजलत में न वारे जाएँ हम वो लम्हे हैं जो फ़ुर्सत से गुज़ारे जाएँ हो के रुस्वा वो हुआ जिस की कभी हसरत थी हम तिरे नाम से महफ़िल में पुकारे जाएँ आप का हुस्न है जितना भी नुमाइश कीजे हाँ बस इतना है कि मासूम न मारे जाएँ याँ से अब राह-ए-अदम सू-ए-फ़लक जाती है आइए पाँव हवाओं में उतारे जाएँ इक तिरे नाम का था साथ कि अब वो भी नहीं अब तिरे शहर भला किस के सहारे जाएँ ख़ामुशी तोड़ के सर ले ली ये कैसी वहशत ऐसा लगता है कि बस तुम को पुकारे जाएँ हो चुका तंग मैं ज़िंदान-ए-ख़मोशाँ से बहुत कुछ परिंदे ही मिरी छत पे उतारे जाएँ ज़िंदगी भी तो कभी मौजों से लड़ कर देखे सिर्फ़ क्या हम को ग़रज़ है कि किनारे जाएँ आज की रात अँधेरों की है दरकार मुझे आज की रात मिरी छत से सितारे जाएँ