मौत आए तो इस तरह आए ज़िंदगी को ख़बर न हो पाए हम न बदलेंगे रास्ता अपना जान जाती है गर चली जाए मौत बर-हक़ है आएगी लेकिन चारागर कौन तुझ को समझाए सर सलामत जहाँ नहीं रहते सर उठा कर वहाँ से हम आए दर पे छोड़ आए उन के रूह अपनी सिर्फ़ हम जिस्म को उठा लाए जब रहा ही नहीं कोई अपना कौन ग़मगीन दिल को बहलाए अपने ही दिल पे अब नहीं क़ाबू ख़ुश कभी हो कभी ये उकताए अपनी लिक्खी हुई ग़ज़ल पढ़ना दिल जो 'हानी' तुम्हारा घबराए