मौत आई आने दीजिए पर्वा न कीजिए मंज़िल है ख़त्म सज्दा-ए-शुकराना कीजिए ज़िन्हार तर्क-ए-लज़्ज़त-ए-ईज़ा न कीजिए हरगिज़ गुनाह-ए-इश्क़ से तौबा न कीजिए ना-आश्ना-ए-हुस्न को क्या एतिबार-ए-इश्क़ अंधों के आगे बैठ के रोया न कीजिए तह की ख़बर भी लाइए साहिल के शौक़ में कोशिश ब-क़द्र-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना कीजिए वो दिन गए कि दिल को हवस थी गुनाह की यादश-ब-ख़ैर ज़िक्र अब उस का न कीजिए सावन में ख़ाक उड़ती है दिल है रुँधा हुआ जी चाहता है गिरिया-ए-मस्ताना कीजिए दीवाना-वार दौड़ के कोई लिपट न जाए आँखों में आँखें डाल के देखा न कीजिए