मौत आई मुझे कूचे में तिरे जाने से नींद आ ही गई जन्नत की हवा खाने से हूँ वो आशिक़ कि तह-ए-क़ब्र मैं जल जाता हूँ शम्अ तुर्बत पर अगर मिलती है परवाने से क़स्द उठने का क़यामत ने किया तो ये कहा लो ये सर चढ़ने लगी पाँव के ठुकराने से वस्ल की शब न कर इतना भी हिजाब ऐ ज़ालिम शोख़ियाँ तंग हैं तेरी तिरे शरमाने से कोई हँस हँस के सुने और मैं रो रो के कहूँ लुत्फ़ दोनों को मिले दर्द के अफ़्साने से ग़ुंचा चटका कोई गुलशन में तो लैला समझी मेरे मजनूँ ने पुकारा मुझे वीराने से रहे रंज ओ अलम ओ वहशत ओ बर्बादी ओ यास ऐ जुनूँ कोई न जाए मिरे वीराने से किस को फ़ुर्सत थी पर इस तरह में कुछ शेर 'वसीम' कह लिए हज़रत-ए-'नौशाद' के फ़रमाने से